एक चमचमाती लकीर
गीले शांत आनंद की
साधी स्थिर उन्मत्ता से.
मौन किलकारी
घनीभूत सर्द कंपकपाती
गतिहीन आशंकाओ की
थामी उल्लास के गहरे सन्नाटे से.
भीषणतम नादों की दो हथेलियों के
नर्म अंधेरो से नशीले
ये मनोभाव
आखिर सम्हालने क्यों पड़ते हैं?