Tuesday, May 21, 2013

जिजीविषा की डूबती नब्ज़


सन्नाटे की ईटों से बनी नींद
नीली ओस की छेनी
हसरतों का पापी प्रेत
उकेरता
ताम्बे के झरनों  से सपने I
कसक के  अलक्षित मदमाते उन्माद से
सिंचा
मीठे नमक का पेड़,
ढांपे एक सुलगती बाम्बी को
जिसमे बरसती  अंतहीन प्यास
ये रिसती सी टीस
ही तो है
जीवन का मूक कोलाहल,
जिजीविषा की डूबती नब्ज़ I
इस डूबती नब्ज की मुर्दा भट्टी
में
राख कुरेदते
कट जाएगा एक और कल्प
इस
सन्नाटे की ईटों से बनी नींद में I