Saturday, December 22, 2012

मुश्किल होने लगा है अब

मुश्किल होने लगा है अब
पहले निराशा हताश नहीं करती थी
हर दुत्कार पता नहीं क्यों संभल संभल जाती थी
हर कटाक्ष की प्रतिध्वनी कुछ मुलायम कुछ संगीतमय हो आती थी
तुम्हारी उपेक्षा का  जाला  भी रेशम से बना था
कुछ उम्र कुछ उत्सर्ग कुछ समर्पण
बंधा देहिक मांसलता से
लिपटा प्रेम के मोटे मुलायम कम्बल मे-
हताशा नहीं होती थी .

पर अब मुश्किल होने लगा है
प्रश्नचिन्ह कुछ रोमानी सोचने को मजबूर नहीं करते
यथार्थ का यौवन अब रोमांचित नहीं करता
समझ थकाती है
तुम्हारी असफलता अब नहीं छेढ़ती
मेरी समझ के छोटे पड़ जाने के प्रलाप

अब कोई ओट  नहीं है
कोई भरम नहीं जो रोके रखे
यथार्थ के प्यासे प्रेतों को

किसको आवाज़ दूं ?
आज भी दया का  नाम नहीं दे सकता इसे
प्रेम- अगर है तो बहुत दूर है
और मैं थक रहा हूँ
मुश्किल होने लगा है अब