Sunday, December 29, 2019

एक साझा ख़ामोशी

एक साझा ख़ामोशी
एक दूसरे के साथ डूब कर ख़ामोश हो जाना 
आवाज़ोंऔर शोरों के बीच तैरते सन्नाटे से बुन लेना 
कुछ ख़यालों से बने लिबास


एक खिलखिलाता बहाव चाहिए 
एक ग़ैरज़रूरी, बिना जोड़ा पर बेहद गहरे से जिया बहाव
ख़ामोशी गहरी होती जाती 
जब वो बोलना छोड़ बाँधना शुरू कर दे 

कुछ हासिल है अगर इस साँस लेते बही खाते का 
तो वो है
इस आरामदेह ख़ामोशी में तली
मेरी तेरी उम्रें 

वो सन्नाटा जो अचानक ही घेर गया था हमें
पसर गया था पुल बनके हमारे दरमियान
वो आज भी है मेरे होने में 
एक ज़िंदा जादू बनके 
30 Dec, 19