क्यों चौंकता है मन
पता तो है
ये अहसास
धुंध से तराशी एक आयत ही तो है
कुछ सुर इस साज पर नहीं लगते
गुनगुनाने की हिमाकत
कुछ और नहीं
एक छोटा मोटा कुफ्र ही तो है
अब कोई शुबह नहीं
तुम्हारी हिक़ारत
कोई नाज़ ओ अदा का खेल नहीं
हमारी अर्ज़ी
इक सिरफिरे का भरम ही तो है
आज फिर सोचा कि
दिल की किसी परत में
उकेरेंगे बारिशों की खुसफुसाहट
कुछ और नहीं
राख़ के ढेर से इक गुज़ारिश ही तो है
क्यों चौंकता है मन
पता तो है.....