इस सृष्टि का वो एक कोना
जहाँ मैं खुद को सबसे सुन्दर और अकलमंद समझता था।
मेरी घबराहटें डरतीं थीं वहां झाँकने से
मेरी कमजोरी रो देती उसकी धमकी भर से
कुछ था उस कमज़ोर से मुस्कुराते कोने में
जो एक ढलती सी थपकी में
सिखा जाता था खुद पे मोहित हो जाना
कुछ था उस उदार आश्वस्त से उस कोने में
वहां रोना मज़बूत करता था
वहां छोड़ आते थे अपने सबसे कोमल
अंतरतम मर्मस्थल
वो कृशकाय मालकिन उस कोने की
देख भर लेती थी
जीवन बाहें चढ़ा दुनिया जीतने निकल जाता था
मुस्कुरा देती थी
सब सारों का सार समझ की चाशनी बन जाता
अजीब हिसाब था उन नजरों का
हम लौह पुरुष भी थे
गुड्डे गुडिया से खिलोने भी
वो स्नेह का मैदान
उस पर समझ का वो खेल
वो कोना कुम्हार का चक्का भी था
वो लड्डू का डिब्बा, वो बटुआ,
पानी में भीगे तुलसी के पत्ते
वो उनके अक्षय पात्र
हमारी हर हसरत उस कोने में बौनी थी
वो सफ़ेद बालों का ब्रह्मांड
अधमरी मांसपेशियो के वो सर्वशक्तिशाली हाथ
लगभग मुर्दा पर सपनों से सुन्दर वो पैर
जो मेरी पीड़ा हरने सात हिमालय फांद चले आते थे
दशकों उस बिस्तर से
एक पुराना नोकिया
उठता था
और चुन बुन जाता था खुशियाँ
इस विशाल संसार के छे कोनो पर
अजीब है माँ के होने का पूरापन
नहीं है
पर उसका वो कोना......
जहाँ मैं खुद को सबसे सुन्दर और अकलमंद समझता था।
मेरी घबराहटें डरतीं थीं वहां झाँकने से
मेरी कमजोरी रो देती उसकी धमकी भर से
कुछ था उस कमज़ोर से मुस्कुराते कोने में
जो एक ढलती सी थपकी में
सिखा जाता था खुद पे मोहित हो जाना
वहां रोना मज़बूत करता था
वहां छोड़ आते थे अपने सबसे कोमल
अंतरतम मर्मस्थल
देख भर लेती थी
जीवन बाहें चढ़ा दुनिया जीतने निकल जाता था
मुस्कुरा देती थी
सब सारों का सार समझ की चाशनी बन जाता
हम लौह पुरुष भी थे
गुड्डे गुडिया से खिलोने भी
वो स्नेह का मैदान
उस पर समझ का वो खेल
वो कोना कुम्हार का चक्का भी था
पानी में भीगे तुलसी के पत्ते
वो उनके अक्षय पात्र
हमारी हर हसरत उस कोने में बौनी थी
अधमरी मांसपेशियो के वो सर्वशक्तिशाली हाथ
लगभग मुर्दा पर सपनों से सुन्दर वो पैर
जो मेरी पीड़ा हरने सात हिमालय फांद चले आते थे
एक पुराना नोकिया
उठता था
और चुन बुन जाता था खुशियाँ
इस विशाल संसार के छे कोनो पर
नहीं है
पर उसका वो कोना......