शायद उधार ही लिया था
वो पिघलते साक्ष्य सा संवेदन ,
एक क्षण को वो ही तो था
ऊंघते ब्रह्माण्ड का उन्मादित आमंत्रण
पर उफनती नदी सिर्फ बह नहीं रही थी
चल और जल भी रही थी ,
छोड़ती पीछे मृत सूखे पठार
वो पिघलते साक्ष्य सा संवेदन
उदास प्यास की तरेड़ें
कुरेदी बड़े जतन से उड़ते युगों तक,
कुछ आदत तो कुछ हमारा आलस
गुम गया, खो गया
वो पिघलते साक्ष्य सा संवेदन 28 April, 2017