Saturday, November 10, 2012

प्यास के अजीब स्थापत्य

प्यास की तरेड़ो में जीवाश्म सा दफन
सूखा झल्लाया
ढूँढने पर भी न मिलने वाले दंश सरीखा
ये मनोभाव।
दर्द की कथ्थई  झिल्ली के पुल पर खुरच खुरच कर
अपना अर्थ तलाशता।
प्यास के अजीब स्थापत्य
अंतरतम मर्मस्थलों पर खड़े
समझ के काँटों के प्रकाशस्तंभ
भटकाते आनंद के अंधे पोतों को।
कोहरे से बने संशय
नाचते
उन्मुक्त उन्माद के शवों पर।
पाप की आहुति के सुलगते ढेर पर
बैठा वो मनोभाव 
घिर रहा है डर के सूखे तिमिर में
कहीं समझ का सवेरा पूरा न हो जाये।