विदा मकबूल फ़िदा
उन टीस से बिखरे रंगों का
वो उन्मादित वैराग्य
रसिक संवेदनाओं का छना हुआ तांडव
नटखट इठलाती रेखाओं के सम्राट
ऐ रंगीले जोकर
मर्यादित अति के जादूगर
शैली की मूर्तिमान परिभाषा
अवसादित कठमुल्लेपन की तिलमिलाहट
और तुम्हारा हलके से मुस्करा जाना
उन खूबसूरत यादों के टेंट पर
हमारी दुत्कारों के फुनगे
दुःख है, शर्म है
पर तुम्हारी कला है तो
उत्सव भी है.
No comments:
Post a Comment