कुछ झूमते हुए झूठ
कुछ रूठे हुए सच
उन उलझे लम्हों का भूला हिसाब ही तो हो तुम
कुछ बेलगाम हसरतों का सहमापन
कुछ उन बिखरी टीसों का पैनापन
उन आवारा रातों का खोया भटकाव ही तो हो तुम
भूलने सा लगा हूँ वो पागलपन
धुंधला हो चला वो लुटने का चलन
उस गए वक़्त का एक सुलगता इसरार ही तो हो तुम
कुछ कर्ज अब चुक चले हैं
कुछ इशारे अब थक चले हैं
उस बूढी ख़ुशी सी शाम में
बेख़ौफ़ शरारत का एक लरजता तगादा ही तो हो तुम
जब अहसासों की झील मुर्दा आदतों के किनारों में सिमट जाये
जब हसीं लबों से ज्यादा उम्र की लकीरों में जिये
उन झूलती ख्वाहिशों के कभी न खुलने वाले खतों में
अधपके नशे सी शोख शिकायत ही तो हो तुम
कुछ रूठे हुए सच
उन उलझे लम्हों का भूला हिसाब ही तो हो तुम
कुछ उन बिखरी टीसों का पैनापन
उन आवारा रातों का खोया भटकाव ही तो हो तुम
धुंधला हो चला वो लुटने का चलन
उस गए वक़्त का एक सुलगता इसरार ही तो हो तुम
कुछ इशारे अब थक चले हैं
उस बूढी ख़ुशी सी शाम में
बेख़ौफ़ शरारत का एक लरजता तगादा ही तो हो तुम
जब हसीं लबों से ज्यादा उम्र की लकीरों में जिये
उन झूलती ख्वाहिशों के कभी न खुलने वाले खतों में
अधपके नशे सी शोख शिकायत ही तो हो तुम
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