नफ़रतों में मज़ा आने लगे
खिलखिलाहटें चुभने लगे
घावों को संजोने लगो
मुस्कुराहटों से डरने लगो
याद कर लेना
जीवित मंदिर हो तुम
मुर्दा खंडहर नहीं
खंडहर हमारी स्मृति होते हैं
जब हम सिर्फ़ स्मृति हो जाते हैं
तो हम खंडहर हो जाते हैं
मंदिर के प्राण
स्मृति भर से नहीं
श्रधा प्रेम
और
मेरे तुम्हारे साथ साथ झुके सिरों से हैं
आज की बूँदों का संगीत
आज की बैठकों की खनक
आज की बच्चियों का चुलबुला अधिकार
कल के पीपल पर बैठे
डर के प्रेतों पर हावी है
होना चाहिए
हम मुर्दा हो जाते हैं
जब
स्मृतियाँ सपनों से ज़्यादा हो जाती हैं
24 Feb 2021
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