Thursday, March 31, 2022

नफ़रतों में मज़ा आने लगे

 नफ़रतों में मज़ा आने लगे 

खिलखिलाहटें चुभने लगे 
घावों को संजोने लगो 
मुस्कुराहटों से डरने लगो 

याद कर लेना 
जीवित मंदिर हो तुम 
मुर्दा खंडहर नहीं 

खंडहर हमारी स्मृति होते हैं
जब हम सिर्फ़ स्मृति हो जाते हैं 
तो हम खंडहर हो जाते हैं
मंदिर के प्राण 
स्मृति भर से नहीं 
श्रधा प्रेम
और 
मेरे तुम्हारे साथ साथ झुके सिरों से हैं 

आज की बूँदों का संगीत 
आज की बैठकों की खनक
आज की बच्चियों का चुलबुला अधिकार
कल के पीपल पर बैठे
डर के प्रेतों पर हावी है
होना चाहिए 

हम मुर्दा हो जाते हैं 
जब 
स्मृतियाँ सपनों से ज़्यादा हो जाती हैं 

24 Feb 2021

No comments:

Post a Comment